Monday, 19 May 2014

रोज यादें भी सफ़र करती हैं

रोज यादें भी सफ़र करती हैं

19 January 2013 at 11:33


रोज यादें भी सफ़र करती हैं,
एक पल से ज़रा मुकरती हैं
बीत  जाता है कल जो उनके लिए
आज के पल में आ ठहरती हैं .

उनको आवाज दे बुलाना मत
वो मुडेरों पे घूमती रहती
उठी जो मन में हुक उस पल की
वो पास आके तुमसे पूछ लेगी

कभी कोसों से चल के आती हैं
हुयी  थकान कब बताती हैं
कभी जन्मों का फासले सी भी
अपनी मर्जी की शह बताती हैं





कभी हल्की सी एक दस्तक होगी
चौकना मत कही अकेले में
ये तो यादों की सहेली होगी
या कोई दोस्त जैसे मेले में

इन्हें बुलाना कितना  आसा है
कोई ताना ना कोई बाना है
हरेक लम्हा खुद चला आता
चाहे कितना कहीं कुहासा हो

कही भी मन ये बावरा सा हुआ
कभी आंसू की बूँद लौटेगी
कभी हल्की हंसी जो आयी तो
याद की परवरिश रही होगी

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