Monday, 19 May 2014

कभी कभी नम हो जाती है आँखें मेरी

कभी कभी नम हो जाती है आँखें मेरी

23 May 2013 at 00:45

कभी कभी नम हो जाती हैं आँखें मेरी
हो सकता है यादों का बहना ही सही हो
ठोस धरातल पांवों  में छाले  गहरे  हैं
छला गया मन शायद मुझको सीख येही है

जाने कितने पल जीवित हो उठते हैं
कही मर्म पहरे के भीतर दबे दबे है
वो जज्बा जो अब नादानी सा लगता है
आज याद बन बहना शायद रीत येही है

कभी कभी कोई जीवन बस एक छलावा
जाने कितने सपने लेकर सो जाता है
मगर येही आँखों के रस्ते बूंदों सा वो
आ आ कर अपनी यादों को धो जाता है



जाने कितने रिश्तों की माला सा जीवन
जाने कितने मनके इसमें लगे हुए हैं
इस  जीवन के पार जो रिश्ते चले गए हैं
ह्रदय द्वार पर साँसों के संग गुंथे हुए हैं


आज ह्रदय क्यों बेकल बेसुध आँखें धुंधली
खोज रही हैं उस को जो अब कहीं नहीं है
एक प्रवाह जो लहरों सा अश्कों में उमडा
नैनों  के कोरों में आ कर लौट रही है

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