Monday, 19 May 2014

अंतर्द्वंद......(गोवा केस पर एक ख़याल )

अंतर्द्वंद......(गोवा केस पर एक ख़याल )

3 December 2013 at 22:22

अंतर्द्वंदों की आंधी में , 
सूरज भी नीला दिखता है , 
निशा अभी तक नहीं गयी है ,
तम से ही हर दृश्य पगा है ,.   

एक एक कर प्रश्न पूछती ,
किरणों का आना जाना है  ,
कैसे मन की गाँठ खुलेगी  , 
कैसे खुद को समझाना अब ??? 



कितने अस्थी पंजर बिखरे  , 
एक ह्रदय के कितने टुकड़े  ,
तार तार ये सारे रिश्ते  ,
पलकों का काँटों पर टिकना  , 

रस्तों पर शीशे बिखरे हैं , 
जाने कौन दिशा में जाना  ,
सारी राहें हैं अनजानी   ,
क्या ये सारा जग बेगाना  ,  



मंजिल को है रौंदा जिसने ,
वो गरूर का मारा होगा , 
मेरे पथ में गरिमा अब भी   , 
वही पथिक खुद हारा होगा , 

मेरे स्वप्न सत्य के पथ पर ,
फिर् जागने पर क्योंकर डरना  , 
माना की कमजोर पथिक हूँ  , 
तम को ओढ़ किरण से लड़ना  , 

कितने मर्म हैं आहत मेरे  , 
भर जायेगे समय लगेगा  , 
पर ये दोष तुम्हीं पर होगा  ,
मेरे संग बस सत्य रहेगा.....  



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