अंतर्द्वंद......(गोवा केस पर एक ख़याल )

अंतर्द्वंदों की आंधी में ,
सूरज भी नीला दिखता है ,
निशा अभी तक नहीं गयी है ,
तम से ही हर दृश्य पगा है ,.
एक एक कर प्रश्न पूछती ,
किरणों का आना जाना है ,
कैसे मन की गाँठ खुलेगी ,
कैसे खुद को समझाना अब ???

कितने अस्थी पंजर बिखरे ,
एक ह्रदय के कितने टुकड़े ,
तार तार ये सारे रिश्ते ,
पलकों का काँटों पर टिकना ,
रस्तों पर शीशे बिखरे हैं ,
जाने कौन दिशा में जाना ,
सारी राहें हैं अनजानी ,
क्या ये सारा जग बेगाना ,

मंजिल को है रौंदा जिसने ,
वो गरूर का मारा होगा ,
मेरे पथ में गरिमा अब भी ,
वही पथिक खुद हारा होगा ,
मेरे स्वप्न सत्य के पथ पर ,
फिर् जागने पर क्योंकर डरना ,
माना की कमजोर पथिक हूँ ,
तम को ओढ़ किरण से लड़ना ,
कितने मर्म हैं आहत मेरे ,
भर जायेगे समय लगेगा ,
पर ये दोष तुम्हीं पर होगा ,
मेरे संग बस सत्य रहेगा.....


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