चलो कहीं चलते हैं , आँखों पे धुप मलते हैं (प्रेम शब्द बहुत ही सुंदर शब्द है ..इस पर छोटा सा प्रयास)
by Suman Mishra on Saturday, 7 April 2012 at 01:05 ·
बचपन के सोपानो से उतरना या खुद के बडे होने का एहसास
हलकी सी चंचलता का हास,खामोशी का अख्तियार
खुद पर नज़र जमी हुयी ,औरों की नज़र से बे-परवाह
ये क्या है जो अलग है ,कुछ तो हुआ है आज ख़ास
बेदर्द , बेरहम सा मन पहले जो था वो अब नहीं
अब सोचता है क्या से क्यों , कुछ आहटें भली लगी
क्यों लोग प्रेम शब्द से नफरत को जोड़कर हँसे
या दूसरों के प्रेम को उपहास से परिहास दे
क्या प्रेम और काव्य का रिश्ता नहीं बन सकता है
खुशबू के फूल ही सही , शब्दों में इत्र रसता है
खाली लिफ़ाफ़े ही सही पर रंग तो गुलाबी है
माना की आज खाली हाथ , भविष्य निधि तो जारी है
ये प्रेम है ये प्यार है जुड़ जाने दो अधिकार से
मत रोक कर हंसो प्रिये ,स्वीकार कर लो प्यार से
छोटी सी बात हद में ही ,ये शब्द ना बिखरे कहीं
पन्नो की शाख कर फ़ैल कर बन जायेगी ये ग्रन्थ येही
मत विदा की तू बात कर, मन को अँधेरी रात कर
आयेगा चाँद जमी पे अब ,इस प्रेम से फ़रियाद कर
हम हैं यहाँ कब से खड़े , इस ओट में इन्तजार में
बस प्रणय की इस दिशा में है प्रथम पग इस बात में
कैसे शुरू कहाँ ख़तम ये सिलसिला चलता रहे
मैं युगों से तुमसे मिलन की बाट में हूँ यूँ खडा
बस चलो अब कुछ दूर तक कुछ धुप आँखों पर मलें
मन विरह की तपिश लिए वियोग में भी हंस रहा .....
(प्रेम शब्द बहुत ही सुंदर शब्द है ..इस पर छोटा सा प्रयास)
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