कोई तकल्लुफ नहीं दोस्ती में , मगर एक दीवार भी है ..
by Suman Mishra on Tuesday, 29 May 2012 at 00:47 ·
कोई तक्कल्लुफ़ नहीं है दोस्ती में
मगर एक दीवार भी है
कैसे कहें हम ये बात
अपना मिलना बस बे-अख्तियार सा है
कल तलक यूँ ही जुमलों में हम मशगूल रहे
एक हद तक किन्ही बातों से तवारूफ करें
अभी तो जानना है बहुत कुछ की बात का मंजर
एक वो आदमी कई दिन से उससे मसरूफ रहे
कभी कभी मुझे हवा की सरगोशी कहती है
कोई एक दास्ताँ दस्तकों में मिलती है
सर्द झोंके से एक हल्की चपत के जैसे
कुचले फूलों की खुशबू में पैरों की सैर सुनती है
कभी कभी जब खुला आसमान यूँ ही खाली हो
कोई परिंदा ना हो तैनात इसकी बे-खयाली हो.
मेरी जरूरत हो गर महसूस तो समझ लेना
ऐसे लम्हों में तेरी याद मन सवाली हो ..
ये दुनिया सैरगाह और हम मुसाफिर से
अपनी ये दोस्ती भी इनसे परे क्या होगी
कोई दीवार का पैबंद अगर लग भी गया
एक हल्की शिकस्त होगी और क्या होगा
अगर ये दोस्ती की हद को मुकम्मल कर दो
दोस्त के नाम से मुझको ज़रा मशहूर कर दो
नहीं जुड़ पाएंगी ईंटें किसी दीवारों में
थाम कर हाथ आज तुम मुझे मगरूर कर दो,,,,
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