कभी कभी अशक्त हो जाते हैं मेरे शब्द,,,,,
by Suman Mishra on Friday, 30 March 2012 at 11:47 ·
कभी कभी अशक्त हो जाते हैं मेरे शब्द
शब्द कैसे अशक्त होते होंगे ?
क्या इनकी भी धमनियां होती हैं
जिसमे रुधिर जैसा शक्ति प्रवाह होता होगा
नहीं ! मन से आवाज आयी
रुधिर नहीं भावनाएं ..लेकिन ये अशक्त क्यों ,,
,पोषित क्यों नहीं कैसे पोषित हों,,,,
शायद सशक्त भावनाओं से
तो क्या कुछ भी लिखने में असमर्थ रहूँ ?
सशक्त और अशक्त दोनों के बीच में अंतर्द्वंद
दोनों ही एक दूसरे पे हावी होने की कोशिश करते हैं
मगर मुझे किसका साथ देना है
असमर्थता होती है मगर शब्दों से जाहिर हो जाता है
क्या शब्द आइना होते हैं इंसान के व्यक्तित्व के
या शब्दों की श्रीन्खला इंसान को बदल सकती है
मानसिकता के द्वन्द और धमनियों का दबाब
जीवन में उतार चढाव में शब्दों का आइना
कभी लगे कुछ पुष्प हैं बिखरे
कभी धुल से लथपथ पथ में
इन शब्दों पर भाव की बारिश
कैसे करू रे मन तू बता दे
कुछ द्वंदों के बादल से आच्छादित है मन
तिरते भी नहीं अशक्त हैं ये
भावना पुष्प से शूल मिले
इनपर उससे क्या प्रहार करूं ?
माना की बरस पड़ेंगे ये ..
ले जायेगे प्रवाह में सब
खाली खाली सा मन अम्बर
फिर भार बनेगा धरती पर
हम रोक ले बहते प्रवाहों को
कुछ संचित कर मरू में जीवित
इन शब्दों से जल छलके तो
भर दूं जग के मन तालों में...
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