वो पागल सी मगर,,,,(कहना अच्छा नहीं लगता है )
by Suman Mishra on Wednesday, 28 March 2012 at 01:16 ·
वो पागल सी सड़क के किनारे , सागर के किनारे दिख जाती है
जरूर दिखती है जहां लोगों के हुजूम हो
पन्ने को हाथ में लेकर जाने क्या बोलती हुयी
जोर जोर हंसती हुयी, और फिर गुमसुम सी कही शांत
उसके कपडे अछे थे साफ़ थे सुंदर लग रही वो थी वो
उसका परिचय कौन जाने कौन थी वो
कितने शेह्तीरों की मार थी उस पर या बस असंतुलन
मगर क़दमों को तो वो नाप तोल कर रख रही थी
लोग एक बारगी ठिठकते जरूर थे उसे देखकर
इसलिए नहीं ! की वो पागल की तरह थी
इसलिए की वो खूबसूरत थी...जिंदादिल सी
इसलिए की बेख़ौफ़ थी लोगों की नजरों से
खुद में मस्त बदती जाती थी अनजानी मंजिल की तरफ
मगर कुछ दिन बाद उन कपड़ों में पैबंद भी नहीं
दिन के उजाले में सलामत , रोशनी ने ढका था उसे
मगर रात में उसे तार तार किया था , मगर फिर भी बेख़ौफ़ थी
मगर अब वो जोर जोर से हंसती नहीं थी
मौन रहकर भीड़ में समझने की कोशिश में थी
कौन हैं ये लोग और कौन थे वो लोग
शक्लों की फेहरिस्त कैसे याद रखेगी
सब के सब जमींदोज हो गए ..और बस वही पागल लडकी थी,,,मटमैली सी
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