-अदाए अपनी आईने में देखते है वो , और ये भी देखते है कोई देखता ना हो (
अदाए अपनी आईने में देखते है वो , और ये भी देखते है कोई देखता ना हो
ये बस एक आह से ताल मेल था किसी की यादों का,
सूना है वक्त के साथ यादों के महल मजबूत होते जाते हैं,
मन की वीरानियों में यादों के बागीचे हैं.
अदाएं हैं ही ऐसी ज़रा बेखयाल सी हैं,
होती अपनी मगर परवाह किसी और की है
बड़े दीवारों के कान हमने सुने थे ऐसे
उसके क़दमों की चाल अँगुलियों पे गिनते थे
बड़ी रंगीन सी दुनिया जिसे हम चाहते हैं
उसके रंग पल में बदल जाते हैं
कभी वो सुर्ख लाल एक गुलाब लगता है
कभी हालात में नकाब नजर आते हैं
इन यादों के महल में जो लोग रहते हैं
अपनी यादों को बुलावा या भुलावा वाले
छोड़ दे आस के पंछी को पिंजरे में से
कर दें आजाद उन्हें महलों के झरोखे से
होता है यादो का घरौंदा हर एक सीने में
समय के साथ खुद ही ईंटें जोड़ लेता है
कोई महलों की बारादरी बनाके दिल में ही,
जब भी मन हो अकेले ही घूम लेता है
इससे हासिल है क्या जब सामने सच्चाई है
तोड़ दो यादों के पिंजरे को और आजाद करो
एक दुनिया तुम्हारी है जो बस तुम्हारी है
उस परायी यादों को अब आबाद करो
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