Tuesday, 22 May 2012

आजकल उसने यादों पर पहरे बिठा के रखे हैं


आजकल उसने यादों पर पहरे बिठा के रखे हैं

by Suman Mishra on Monday, 2 April 2012 at 12:23 ·
 

उसे हमारी याद नहीं आती है आजकल
खुशबू पवन में है नहीं कुछ और महक है
मसरूफियत या और कुछ पर बात और है
पहरे लगा लिए हैं मेरी यादों पे शायद,,,



अशआर है की आलमे -खुमारी का दौर है


अब बात वो नहीं कुछ जादा ही शोर है

अब तो बसर ये है की है  आसान जिंदगी
पहले मगर नहीं थी ऐसी बे-परवाह जिंदगी,,



ये अलग बात है की मैं आजाद हूँ अभी
कोई तकाजा है नहीं उसके  जूनून का
नक्शों पे नज़र है मेरी दूरी तो देख लूं
वो गैर है तो क्या हुआ अपनों का सफ़र है


(पहले की बात ) 
हर बे-ख्याली में अलग अंदाज था उसका
ये सुबह का उजाला और चाँद था उसका
हर जगह और हर बात में उसकी रवायत थी
उससे विदा की बात और रवानगी उसकी

यादों की वो बयार आज क्यों नहीं आती
छुप छुप के सरगोशियाँ क्यों नहीं सुनाती
पहरों में यादें बंद हैं , जज्बात रुखे हैं
ये दूरियां भी शख्स की पहचान कराती हैं

 

अब तो फिरेंगी रूहों में वो कैद सी यादें,
कर देंगी खुलासा जाहिर सी इरादे
उनको भी है मलाल नहीं मिल सकेंगी वो
दो मन के बीच नश्तरों तब्दील सी है वो


रातों की चहलकदमी कुछ नील कमल से
फूलों की अजब रंगत कुछ नशर थे चुभे
हर याद पे उसकी येही देते थे गवाही
अब रास्ता अलग  सारी यादे फना सी हैं,,,,,,

1 comment:

  1. "अब तो फिरेंगी रूहों में वो कैद सी यादें,
    कर देंगी खुलासा जाहिर सी इरादे
    उनको भी है मलाल नहीं मिल सकेंगी वो
    दो मन के बीच नश्तरों तब्दील सी है वो "

    आपकी हर पोस्ट अलग हट कर है।

    सादर

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