Tuesday, 22 May 2012

गरीबों की बस्ती


गरीबों की बस्ती

by Suman Mishra on Monday, 19 March 2012 at 12:02 ·


गरीबों की बस्ती में कहीं जन्नत नहीं होती,
कहाँ बचपन , कहाँ यौवन कहीं ये कम नहीं होती,
चले जाओ जो एक बार एक भभका सा आयेगा
धुंआ फैला मायूसी का, नजर ये तंग नहीं होती


निकल पड़ते हैं खाली पेट कई मर्तबा देखा
ये है शुरुआत हर दिन की भूख से तड़पता देखा
कही कूड़े के ढेरों पर जमे होते हैं ढेर इनके
येही पर रोजगारी है सुबकता जलजला देखा


इन्हें फिरना है दर दर में थोड़ी सी बदहवासी से
कोई दहशत नहीं इनको फिरे ये बे-खयाली से
अगर कोई खिलौना एक टूटा मिल गया इनको
जोड़कर अपने हाथों से वो मंजर खुशगवारी का


बड़ी वे-सब्र निगाहें हैं हसरतो की नुमाइश क्या
इन्हें लोगों की नजरों में दूर कोई फरमाइश क्या
बशर्ते काम तो करना है पूरी जिंदगी इनको
आज ये भूख से सोया, सुबह बीती उमर तो क्या


कहाँ आँचल मिला माँ का, कहाँ यौवन बहारों में
कहाँ बचपन जो बीता उम्र की देहरी कगारों पर
थके कदमो से एक एक पल अभी जद्दो जेहद के दिन
बीत जाएगा ऐसे ही , त्रस्त जीवन के पल और छिन


विषादों में जो जीता है कहो उसको बढे आगे
लड़ाई लडनी जीवन की मगर दुःख हार जाएगा
एक एक पल कीमती है, नहीं है काम अब छोटा
जमी गज भर शुरू कर दो एक विस्तार जीवन का,

No comments:

Post a Comment