कही तो वो जहां होगा , वहाँ अपना कोई होगा
by Suman Mishra on Saturday, 14 April 2012 at 16:01 ·
है जितनी धुल सड़कों पर, लिपटी है मेरे वसनो पर
कभी हाथों के दम पर हम सड़क पर झाड देते है
नहीं तो क्या करें पर्दा, छुपाये खुद को हम कितना
कहीं पट खोल कर खुद ही दो कपडे मांग लेते हैं
कसूरों की अजब रस्मे हमें लाई है धरती पर
वो अब आजाद हैं हमसे , कहाँ हम याद करते हैं
बहन का फर्ज है भाई, नहीं रिश्ता नया है ये
कही मिल जाए खैरम ख्वाह ये कर्ज उतार देते है
कहीं सागर किनारे बैठ कर देखेंगे लहरों को
वही तो मेरा साथी है समझता मेरे मर्मो को
नहीं चुप एक छन भी हर समय आवाज देता है
सुनाता दास्ताँ अपनी मुझको हमराज कहता है
ना जाने कितनी बातों को है बांटी मैंने भी उससे
शहर की भीड़ से हटकर जगह रखी है चुनकर के
येही से बचपने का अब ख़तम आगाज होता है
लहर में भीग कर मन का अलग सा साज होता है
नहीं उबरेंगे हम ऐसी उदासी घेर लेती है,
कही है धुप कही पर छांव उबासी शह ही देती है
एक धुंधली सी तस्वीर मुझको याद आती है
सड़क पर माँ लिए बच्चे सभी को हाथ फैलाती है
है क्या तकदीर ये जीवन साथ में इसके चलता है
कहीं माँ का कही बच्चे सभी का एक है रास्ता
इसी रस्ते पे जाने कितने शहनशा गुजरे
मगर क्या ये यहाँ बदले , हाथ फैले हुए सिमटे,,,????
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