एक पुकार मेरी तरफ से भी...
by Suman Mishra on Tuesday, 1 May 2012 at 12:14 ·
क्या कहूं अब पग थके जो
स्वांस भी अब टूटती सी
ह्रदय की धड़कन शिथिल है
मगर तेरी याद गाफिल ...
तुम नहीं आओगे कैसे
शब्द की दरकार ही क्या
मन की भाषा जो पढी है
टूटेंगे अब तार कैसे,, ,
चल पडू मैं खुद ही आगे
पथिक बन जो तुम मिलो तो
रास्तों से दिशा पूछूं
मंजिलों की बात आगे
कही कोई ठौर होगी
गति नहीं गतिमान हो लूं
परावर्तित शब्द से ही
तुम्हें कहीं अनुमान कर लूं
जब तलक ये पंख काबिल
उड़ रहे हैं मन धरा पर
नैनो में पर्तिबिम्ब लेकर
देखते हैं अक्स तेरा
अब प्रवाहित अश्रु मेरे
थोड़ा बादल थोड़ा पानी
छा गए हैं रास्तों पर
तुम ज़रा एक सांस भर दो
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