Tuesday, 22 May 2012

मौन को मत छेड़ देना , जाने कितने रंग बहेंगे


मौन को मत छेड़ देना , जाने कितने रंग बहेंगे

by Suman Mishra on Thursday, 17 May 2012 at 23:33 ·


मौन को मत छेड़ देना , जाने कितने रंग बहेंगे
रंग बिखरेंगे यहाँ पर , मौन को कुछ शब्द देंगे
पुष्प को मत तोड़ लेना , ये स्वीकृत की नहीं मंशा
जल में तिरकर ये बहेंगे, लहर के संग चल पड़ेंगे

मौन के शब्दों की गाथा जाने कितनी लम्बी होगी
ये तो बादल सिमटा सिमटा, जल की बूंदों से भरा सा
बह गया तो धरा सिंचित , मौन मन रंग जाएगी ये
रंग परिधानों में सजकर ये हँसेगी कलरवों में



"मौन" मैं कुछ सौम्यता है ,
"मौन" संवेदन सी गाथा
"मौन" में वो सब छुपा है
"मौन" का  मर्मों से  नाता ,


किसी गहरी झील सा जो शांत सी दर्पण सा चेहरा
फिर भी मर्मों के प्रवाहों में ज़रा सा मैं गति दे दूं
मौन के गुल्लक में जाने कितनी बाते खनखनाती 
कर दूं क्या आजाद इनको , कुछ खरीदूं और यादे


मौन में रंग ? मत हंसो तुम ,
ये तराशी मूर्त जैसी
मैंने पहनाये हैं कपडे
जब तलक ये पूर्ण होगी

चल पड़ेगी राह पर ये
गति भरे शब्द साथ लेकर
साथ में यादों के पंछी
नीरवता को भंग करेंगे

(मेरी प्रिय पंक्ति)
टूटने दो मौन को अब
वज्र सी आवाज होगी
फट पड़ेंगे नभ से बादल
तड़ित दिल के पार होगी


इंद्र का सिंहासन हिलेगा
तांडव शिव का आज होगा
धरा का श्रृंगार करने
फिर से नव गंगा बहेगी,,,,,

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