Tuesday, 22 May 2012

अनदेखी तस्वीरों में कुछ बची हुयी थी आज ही देखा (खो जाती है मन से जब वो)


अनदेखी तस्वीरों में कुछ बची हुयी थी आज ही देखा (खो जाती है मन से जब वो)

by Suman Mishra on Wednesday, 28 March 2012 at 01:00 ·


कभी  कभी नजरों के सामने अनदेखी तस्वीरों सी वो
मुखरित हो कुछ बोल पड़ेगी ऐसा लगता है जाने क्यों
कितना कुछ है उससे मिलता, उसकी हंसी वही स्पंदन
कही एक एहसास अतीत का लौट  पड़ेगी वो जाने क्यों

एक दरख्त की शाख मिले तो कुछ पल जो लेलूँ मैं सहारा
अंखियों को पलकों ने ढांपा, विचलित मन यादों का किनारा 
बार बार वो चित्र सजीव सा क्यों बरबस खींचे जाता है
आज जो देखा उसे अचानक बीता पल सामने खडा है



नहीं नहीं वो सत्य नहीं है ,परिकल्पना है मन में ऐसी
मानव मन जो बहता रहता भावों की नौका के जैसी
बार बार प्रश्नों की देहरी उसे उजागर करना चाहे
अब तो बस रेखांकन से ही उसे दुबारा पढ़ना चाहे


मन के परदे झीने झीने तार तार में बसा है कोई
नहीं है झरते वो फूलों से , धागे से बस बंधा है कोई
शीशे के मानिंद सघन है आर पार ना जाने पाए
कुछ रेखाए बस चेहरे की बन जाती है शक्ल वृथायें


भीड़ बहुत है , नहीं समझ है स्वप्न है या दिन की बाते हैं
मन के शून्य में कोई खोया , चेहरों से मिलती हैं निजाते
तैर रहा है हल्का सा वो मानस पटल नहीं दरवाजा

बस आगोशों में आँखें हैं बंद कर रखा उसे ज़रा सा



ये जीवन के बीते पल हैं एक एक फूलों के जैसे
सबकी खुशबू अलग अलग है पर हम हैं भूले पंछी से

कौन कहाँ किस मोड़ बिलग हो या हो मिलन किस्से जीवन के
आज जो देखा उसे जो मैंने याद आगया पल जीवन का.,

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