Tuesday, 22 May 2012

उससे कह दो मेरे ख़्वाबों में ना आया करे,,,,(कशमकश )


उससे कह दो मेरे ख़्वाबों में ना आया करे,,,,(कशमकश )

by Suman Mishra on Tuesday, 15 May 2012 at 01:15 ·



बड़ा विस्तृत सा ये रूप या रिश्ते की थाह है  क्या
कहाँ तक सोच कर मैं खुद को अब तामील जो करू
अमलो जामा है पहना बहुत सी याद काबिज है
कहाँ तक मुद्दतों की बात का अफ़सोस मैं करूँ

अभी तक मैं नहीं उबरा , वो दुनिया एक अलग सी  थी
अजब सी मन पे रंगत थी, हरेक जेहमत शहादत थी
गुजर जाते थे रस्मों को निभाने के लिए हद तक
मेरी दुनिया में वो बस थी , उसकी दुनिया भी मेरी थी

वो था फानूस जैसा वक्त क्या बस रोशनी मंजर
ना जाने कितने रंगों के धनुष खिलते थे हर पल में
थी बाहें फ़ैली उसकी मेरी दुनिया में समाने को
मैं खो जाऊं जो गर उसमे , नहीं कोई नुमाइश थी



ना जाने कितने दर पे हम मिले शाम से पहले जा जा कर
वो सूरज अस्त होकर आ गया मिलने फिर से मुहाने पर
कई रंगों में रंगने को विछा देता था गलीचे
मगर अपनी जो बंदिश थी वही हम सोच कर बिखरे

कसम है उसकी मेरी भी , नहीं ये आजमाइश थी
बस एक हल्की सी दस्तक बंद दिलों के दर्द जैसी थी
धड़कने एक लय में थी, बस एक उसकी गुजारिश थी
हमारी बात हम तक ही रहे , हमारी भी ये ख्वाहिश थी


एक तनहा सा है ये मन, नहीं समझा ना समझेगा
ये पंखों से नहीं उड़ता , मगर अब कौन रोकेगा
जहां चाहे जिधर  जाए , पुकारे मन से ये उसको

कोई सुनता भी है इसको, घिरा खुद के सवालों से


है कुछ मालूम इसको जो कभी उसकी धरोहर थी
ये लाया मांग कर उससे बनाने अपनी किस्मत भी
ये मन के तार के जैसा जुड़ा है उसके   ख्यालों से
अजब सी एक कशिश इसमें, अजब से बे-खयाली है




सुनो...अब स्वप्न में आना नहीं तुमको  हिदायत है

बड़ी ही तपिश है इसमें , अजब सी ये नफासत है 

मैं हूँ बदला हुआ इंसा , चला जो साथ मैं उसके
वो  मेरी अलग दुनिया थी  , खोया था ये शिकायत है

वो एक स्वप्न सा हरदम दिलो गुलशन में खिलता है
उसीकी बात से हर बात की शय शुरू करता है
मैं चाहूँ अलग होकर मैं अलग अपना जहां चुन लूं
मगर वो मेरे साए की तरह मुझमे ही रहता है


"है हर जो बात ये मैं स्वप्न को अलविदा कह दूं "

मैं दूं अब इत्तिला उसको ना आओ जेहन में कह दूं
जो होगा हश्र अब मेरा , ये माना धडकनों की बात
ना आये स्वप्न में मेरे , कहो तुम या मैं (मैं तुम दोनों एक ही हैं ) कह दूं

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