Tuesday, 22 May 2012

क़दमों की तासीर देखी ..फिर कही तकदीर देखी


क़दमों की तासीर देखी ..फिर कही तकदीर देखी

by Suman Mishra on Friday, 6 April 2012 at 01:31 ·


लडखडाते क़दमों की तासीर भी वैसी ही होगी,
कुछ कदम पर जमी या कही पर जंजीर होगी
कहीं पर रुकने का मन हो थोड़े ले आओ सितारे,
हाथ की मुट्ठी दबाकर रोशनी बिछा दो सारे


सोच कर खामोश होना रास्ता क्या पार होगा
दूरिया उतनी रहेंगे, ख़ाक मन बेजार होगा
एक हल्की हंसी लेकर बढ़ चलो अब इस सवेरे
चांदनी भी आ मिलेगी दिन ढलेगा जब किनारे



मन की आशा गूंथ ली है अब हैं पहरे मेरे खुद के
छोड़ना है नहीं इसको , जायेगी ये क्यों विछड के
एक ताकत ये हमारी नया कुछ होना है होगा
बस कदम के रुख पर हमको कर्म पर मन फतह होगा


माना की मैं थक चुका हूँ , ढूढता हूँ छाया किसकी
ये तो बिन पत्तों का साया रोशनी से दग्ध होगा
मरू में गिरता स्वेद जल सा कोपलों का भान होगा
खिल गयी जो मन में कलियाँ पल्लवित सा भान होगा


सफ़र तो तनहा ही था अब सोचता हूँ साहिलों पर
क्या किया ये जन्म लेकर चल दूं उठकर अब भी तत्पर
कलम की ताकत से कर विद्रोह रंग दूं इस धरा को
लिख दूं मैं तकदीर इसकी, कतरे पर मेरा निशाँ हो.

बढ़ रही लहरें सतह से , मैं ज़रा सा साथ हो लूं,
धरा अम्बर देखता हूँ थोड़ा सा पाताल हो लूं,
दिग दिशाए अजनबी हैं ,मैं ज़रा पहचान कर लूं,
कौन हूँ मैं मैं कहाँ हूँ , खुद से ही मैं तकदीर लिख दूं

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