जब भी आँखों के कोरों से बूँद लौट जाती है
by Suman Mishra on Wednesday, 11 April 2012 at 16:38 ·
आंसुओं को उम्र तहजीब पता है
इन्हें भी हया आती है बाहर आने में
फिर भी मनचाही चीज से जुड़ जाती है ये
उसको पाने के लिए याचना है शब्द सी
वैसे भी कितनी बार इसका तर्जुमा हुआ
कुछ ढलकने को थे मगर वो वही रुक गए
मायूसियों ने रोक लिया जबरन कस के
रुक गए वो आँसू कुछ इजाफा हुआ
है कौन यहाँ जिसने ये बूँदें नहीं चखी
हल्की सी है नमकीन मगर कितनी गिर पडी
जाने क्यों ये बे-हिसाब है भरी हुयी
सुनती है बात दिल की और बाहर निकल पडी
हर तरफ गहरा तम है की आंसू किसे दिखे
यूँ राहों में कुछ सोच कर थोड़े सजल हुए
कोई ना देख ले इन्हें फिर जज्ब हो गए
जिसके लिए निकले थे उसको ही चोट दे,,,
शायद यकीं नहीं उसे की कोई साथ है
कभी प्यार में किसी की शह और मात है
इंसान और भगवान् दोनों का अक्स है
बस देख लो बूंदों को आइना निः श्वास है
इंसान और आंसू रिश्ता कुछ अजब सा है
जब जज्ब हो जाते है भीतर मन में प्रबल सा है
कुछ तो है थाह मन में कुछ शक्ति है मिली
दृढ हो गए जज्बात , पहले ये भ्रमित सी थी
मैं पथिक हूँ इस राह में आया हूँ अकेला
कुछ बहा पसीना जहां शबनम का था रेला
फूलों की सौगाते मिली थी घर से जब निकला
मायूसियो के दौर में यादों का बसेरा
ये साथ में सजल नयन देते हैं दिलासा
आँखों में अक्स साथ है आगे है कुहासा
बस दूरियों का जख्म है भर जाएगा जल्दी
काँटा चुभा था राह में..घर आएगा जल्दी..
No comments:
Post a Comment