Tuesday, 22 May 2012

किस्मत,,,,,,,


किस्मत,,,,,,, 


कहते हैं हाथ की रेखा है , पर मन के भाव अलग ही हैं,
कुछ सोच में मेरी शामिल है, जो और किसी को नहीं दीखते.
मन सोच रहा है तारतम्य कैसे ये सब हो जाता है
कोई रिश्ता जो अनदेखा हमसे आकर जुड़ जाता है,

प्रश्नों का साथ है किस्मत से, ये कभी नहीं उत्तर देती ,
सोचा है कुछ   होता है कुछ थोड़ा आभास नहीं देती ,
मैंने आवाहन कर ही दिया ,पर बनती नहीं सहेली ये
गर साथ रहा इसका मेरा, जीवन की खोलूँ कुछ गुत्थी.



कितना जीवन छायान्वित है, कितना तम से आप्लावित है,
कितना मरू है आगे पथ में ,कितना उपवन आच्छादित है
इस नाप तोल के जीवन में असली जीवन को जिया किसने

किस्मत की परछाई देखी , साकार उसे ही किया मैंने,


उसकी यादें , कुछ जख्म हरे, तिल तिल कर जीते पल को हम
ना मिलना था उसको मुझसे , कई शाम उदास किया मैंने  
अब भी हर रोज सुबह आकर देती है मौक़ा मिलने को,  
पर रिश्ते जुड़ जाते हैं जब,उसको दरकिनार किया मैंने.




कोई अधरंगे पुष्पों सा आधा ही रंग भर पाता है,
कोई जीवन की पहल से बस रंगों के महल पा जाता है,
कुछ मायूसी ही जीवन के रस्तों को राह दिखाती है,
कुछ कमतर होकर भी आगे किस्मत से बढ़ती जाती है

वो आज यहाँ है थका हुआ , कुछ जल की बूंदों को तरसे
कल वही भीगता है स्वाति की बूंदों के नीचे
शतदल से कमल की पंखुरिया धीरे धीरे ही खुलती हैं
ये भाग्य के ताले की चाबी किस अभियंता से बनती है,,,



जो स्वप्न अगर साकार हुआ , कुछ माने में वो आकार हुआ
बस समझ लिया है जीवन को, किस्मत से ही अधिकार हुआ
पर कर्म कहाँ पर कर आये, जो मेहनत थी वो भर आये
अब चलो लगेंगे फल उसपर, पेड़ों को छाया दे आये/

ये स्वार्थ नहीं निस्वार्थ भाव, कर्मों का लेखा जोखा कर,
आगामी जीवन में किस्मत की बात को ना अनदेखा कर
होता जन्मों का एक जनम , या कई जनम की भरपाई,
ये कर्म से किस्मत बनती है, इस जनम की ये ही चौपाई....

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