Tuesday, 22 May 2012

उसके होने का एहसास कुछ खुशबुओं के साथ सा है


उसके होने का एहसास कुछ खुशबुओं के साथ सा है

by Suman Mishra on Wednesday, 9 May 2012 at 01:17 ·

उसके होने का एहसास कुछ खुशबुओं का साथ सा है 
बीच में मौसमों की मार गुजर जाती है
कभी पतझड़  , कभी बारिश के तेज छींटों से
एक झोंके की तरह  सब्ज मन कर जाती है 

आजकल रोशनी में गर्म सा एहसास बहुत
चाँद भी जल रहा है बादलों की ओट लिए
एक एहसास ही तो है जिसे अपने  मर्मो से
बदल के पहलुओं को जज्ब उसे करते हैं 


चलो अच्छा ही हुआ सब छुपा एहसासों में
बात निकलेगी तो ये दूर तलक जायेगी
जमी पे  क़दमों के निशाँ जो हैं जाने कितने 
आसमा से भी कभी हाथ मिला आयेगी

कब तलक आसमा की तरफ यूँ ही देखूं
क्यों ना फूलों के रंग उसको भी मैं पेश करू
कही तारों में गर खुशबू की एक सबा होती
चांदनी भी उसी में रोज नहा कर आती .

हमने महसूस कर लिया है उसे मेरी खता
नहीं बख्शेगा मुझे जानकर वो मेरा पता
मगर एहसास को बांधा है मैंने धड़कन से
ली अगर सांस तो बस सारी जुबानी है अता


बहुत मुश्किल से नजाकत से है रखा इसको
कभी तन्हाई में एहसास मेरे रु-बरू से
ये नुमाया भी कभी हुए अगर देखेंगे
मेरे एहसास और उसमे ताजगी कितनी.

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