Tuesday, 22 May 2012

टुकडा भी धुप का जहे-किस्मत से मिलता है (धुप छाँव )`


टुकडा भी धुप का जहे-किस्मत से मिलता है (धुप छाँव )`

by Suman Mishra on Thursday, 17 May 2012 at 00:54 ·
टुकडा भी धुप का जहे-किस्मत से मिलता है
ये चादर नहीं ऐसी की पैर ढँक ही जाएगा
अधिकार उस पे सबका है वेदों ने लिखा है 
हिस्सों में जहानत की खुशी आधी अधूरी

कोई खुशी में डूबा की  अब उबरता नहीं
अजब सा ये दौर जाने कितना जुनू है
उम्मीद भी सजग है की वो सफल हो जाए 
किस्मत की बेरुखी से कही मात ना खाए



ये प्रेम प्यार की कहा जरूरत है अब किसे
सब डूब रहे हैं किसी आदत के नशे से
आसान है हर शख्स इसे पा ही जाता है
किस्मत नहीं ये दौर कहो, झूठा सा नाता है

कुछ लम्हे खुद के साथ जो हमने थे गुजारे
खुद को गलत सही समझ चल  चित्र उभारे
थी अजब सी तस्वीर मेरी , मेरा ये वजूद
मुझसे अलग लगा मगर ये मेरे सहारे



आसान किस्तों में मिली ये जिन्दगी जी लो,
कितनी मिली हिस्से में ये मत पूछना कभी
इस  धुप छाँव पे है अधिकार सभी का
बस दोष ना देना कभी किस्मत की जमी का


जीवन के बाद भी रहेंगे साथ में उसके
ये रूह फना होगी नहीं मेरा यकीन है
बस इत्तिला मेरी येही पहचान सको तो
जन्मों से हम तुम  एक ही राहों पे चले हैं


क्योंकर हो नाराज ज़रा पास तो आओ
हालात के शहतीर आज फिर से लगाओ
बरसात में भीगोगे अगर होगा फिर एहसास
पीली सी धूप में पसीना बहा कितना


कहते है मुझे लोग ये शब्दों की बाबत से
 मिलता है मुझे बल भी उनकी इजाहत से
पर मंजिलों पे नजरों का अभी देखना बाकी
जिस दिन मिली मुझे तो मिलंगे शराफत से
                   *****
                  *****

1 comment:

  1. बस इत्तिला मेरी येही पहचान सको तो
    जन्मों से हम तुम एक ही राहों पे चले हैं
    बहुत सटीक ....स्पष्ट और प्रखर लेखन ...
    बधाई एवं शुभकामनायें ...!!

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