Tuesday, 22 May 2012

वो जो चितेरा लिख के गया है आँखों में कितने अफ़साने


वो जो चितेरा लिख के गया है आँखों में कितने अफ़साने

by Suman Mishra on Tuesday, 27 March 2012 at 00:03 ·


कभी कभी सपनो में हमने रंग डाले थे दिन के उजाले
बंद आँखों की दीवारों के पीछे थी महलों की दीवारें,
कुछ कच्ची सी कुछ पक्की सी अभी नयी थी कुछ ही दिन की
एक नै बुनियाद का सपना देख लिया था इन आँखों ने

बड़े बड़े थे आले उसमे जिसमे दीपक की लौ मद्धिम
कहीं अँधेरे में गिर कर हम पकड़ के चल दे कोई भी तम
डिबिया में बंद होकर आँखें खुल जाती हैं सपनो में ये
जो तस्वीर बनी है उसमे , काश वो बोल दे बाहर आ के



आँखों के पट खोल ज़रा तू, मैं भी देखूं कौन बसा है
देखूं उसकी दुनिया कैसी, कुछ हलचल या मौन पसरा है
कर दे अब गतिमान उसे तू, जिसे संवारा दीप जलाकर
आने दे अब उसे भी बाहर , करे सामना सूरज का वो.

रात चांदनी हल्की ठिठुरन मन धड़कन  की गति ना देख तू
नूपुर की ध्वनि संयम बरतो, कही चाँद तुमको ना पकड ले
ये आमंत्रण किसका है और किसके लिए पगों के फेरे
नहीं नहीं ये स्वप्न तुल्य बस, नेह नहीं बस मन के घेरे


एक आस और एक जीवन  है हर आँखों में येही बसी है
जो ना मिले गर खुली आँख से स्वप्न पालकी वहीं बिछी है
अफसानो के अक्स तिरे हैं आँखों में तस्वीर को  देखा
उसने एक तुलिका से बस खींच दी अपने मन की रेखा

भाषाओँ का ज्ञान नहीं पर ये जो बोले मन लो सच है
होती है कुछ मूक मगर हाव भाव में बड़ी प्रबल है
कहीं मार्मिक, कहीं करुण की कही तेज है रणचंडी का,
मगर किसी आँखों में बस "वो" वही चितेरा वही है आशा,

No comments:

Post a Comment