Tuesday, 22 May 2012

ये हसरतों की दुनिया,,,


ये हसरतों की दुनिया,,,

by Suman Mishra on Tuesday, 20 March 2012 at 00:47 ·


गहन  सोच में डूबा मन , नदियों की सिलवटों में हम
डूब रहे थे जाने कबसे , बही सुरभित शीतल सी पवन,
सारी सोच उड़ा ले गयी, बाहर लहर और भीतर मन
अब कुछ भी तो शेष नहीं, साफ़ है उज्जवल हर चिंतन


गहन झरोखे में छुपता ,खुद को या तन ढांप रहा
कहा कहा ढूढा उसको , परत चढी है गहन है तम
आ जाओ बाहर अब तो , सूर्य का है अब स्प्नंदन
मन मयूर का नृत्य शुरू, जग का होगा अभिनन्दन



मेरी हसरत है की गुलाब रंग दूं अपने रंग से,
प्रकृति के रंग इंसा खुद भरे अपने मन से
हर एक जीव की ख्वाहिश की उसके मन की बात
नजर जिधर भी वास्ता रंगों का हो वसन्त.


गुलों से पूछ कर रंगते या मन से रंगते हम
सुबह की खुशगवारी में रंग बिखेरते हम
हरेक हाथ में रंग और तुलिका होती
अपने बागानों में रंगों की मजलिसे सजती


मेरी हसरत की करू बात हरेक पंछी से
कितनी मुश्किल है इन्हें समझना अभी तक भी
काश इनसे ही मेरी गुफ्तगू होती हर रोज
नहीं अखबार की ये दासता गमगीन होती

कितनी मीठी जबा में बात और उसका मजा
अभी एक डाल पर वो आयी है बनके मेह्मा
हमारी नशर है की पास आ के बैठे ज़रा
कहाँ किसने उडाई है सुनाये  गुले दासता


मेरी हसरत है  की आंसू गिरे मोती बनके
हरेक तबके के आंसू मिले कीमत जैसे
गरीबी आँखों से ढलके तो हीरों की बूंदे,
तभी खुशियों के आंसू  सच हो मायने इनके

ये भागती हुयी दुनिया थमेगी फिर से
नज़र के आंसुओं के मोल तोलेगी कैसे
एक पंछी की कहानी अगर जो सुननी है
पेड़ वो दरम्यान के भला काटे कैसे...

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