Wednesday, 30 May 2012

दुविधा .....मेरे मन की


दुविधा .....मेरे मन की

by Suman Mishra on Wednesday, 23 May 2012 at 12:17 ·

अभी तो बस ख़ामोशी सिल दी
सिलन खुली तो गर्जन होगी,
बाँध बनाकर रोक दिया है
वरना वेग प्रलय सी होगी

कुछ पत्तों को चुनकर मैंने
आग ताप ली पेड़ के नीचे
आंधी से जब हिलेगी शाखा
टूट गयी तो जड़ रोएगी



शंख बजे तो हृदय दुदुम्भित
लहरों में बहकर आया  था ,
है अमृत मुख से लगने दो,
पर जीवन की बात ना करना 


जल की सीमा ख़तम हो रही
कश्ती में पहिये लगने दो ,
अब इंधन की बात ना करना
फुकनी से लकड़ी जलने दो.



अन्न मिला तो पचना मुश्किल,
जूते फटे तो चलना मुश्किल,
पथ पे धूल, परत पत्तों की
पतझड़ से सड़कें बिछने दो

ये गति है जीवन में आगे
क्या मैं बड़ा और तू छोटा
एक रास्ते चलते हैं हम
बस कुछ शब्द अभी कहने है 

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