आज रंग बरसेंगे बूंदों में अलग अलग, राग थी मल्हार तान आस ने लगाई है
by Suman Mishra on Sunday, 20 May 2012 at 00:39 ·
आज रंग बरसेंगे बूंदों से अलग अलग ,
राग थी मल्हार तान आस ने लगाई थी
दीपक की रोशनी में बूंदों के नृत्य देख
भैरवी की तान आज किसीने सुनायी है
स्वाती की बूँद ताईं बैठी वो त्रिश्नित सी
कूक थी पपीहे की प्यास ना बुझाई है
आवत जो दूर से बटोही नैन चमक गए
चला गया अनदेखा धूर आँख में समाई है
भीगा मन भीगा तन रंग रंगे ठाडी हूँ ,
अलकन ते पलकन पे काजर संवारी हूँ
देहरी से उपवन तक नयनो ने राह तकी
पाँव के निशान रंग पैरों से छाप आयी
मन को मयूर और मधुबन की पांखी से
प्रीत रीत जोड़ जोड़ पंख सा उडाये जा
राह की उजास आज सूरज की लाली से
आवन की खुशी में तू महावर सजाये जा
दोनों नैन दीप जले , बाती ना तेल बिना
मन की ये आस श्याम प्रीती से बढाए है
रंग की फुहार आज मेघ गजब बरस गयो
पात सरिस डोले मन हूक सी जगाये है
येही व्यथा येही कथा जनम भया नारी का
देहरी जो लांघ गयी हुयी बस परायी है
जीवन में आस लिए , मिलन पी का साथ लिए
प्रतीछित वंदना सी स्वरों में समाई है,,,
बहुत सुन्दर ....मन खुश हो गया पढ़ कर.
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