बावरे नैन,,,,जिन्हें समझना मुश्किल है
by Suman Mishra on Monday, 2 April 2012 at 01:13 ·
नैनन की गति जानू कैसे नैन छिपे दुई द्वार के भीतर
अजब गजब रंग द्वार बने हैं, नैन पुतलिया बाण से खींचत
अब तो कठिन मन तौलूँ कैसे , भाव ना निकसत अब कतहूँ से
काह से बात करू अब बोलो, जीवत जागत मन से कचोटत
नीद में स्वप्न से डूबी आँखें , नहीं खुमारी गयी अभी है,
भारी है कुछ वजन धरा है, स्वप्न धरा से लौटी नहीं है
वो जब नीद से बोझल होकर, कही और जाकर खुलती है,
श्रम हो या ना हो तब भी तो खुलने में ये देर करती हैं
कहाँ कहाँ की सैर थी मन की, मिला ना वो जो खोया हुआ था
अजब से थे परिदृश्य वो सारे, कदम थके से भार था मन का
नहीं बात हो सकी थी पल भर एक बार जो दिखा कहीं पर
नयन द्वार खुलने में देर है, खोज रहे हैं घर वो किसीका,,,
कुछ आँखों में पंख लगे हैं आशा के उड़ने को आतुर
नहीं द्वार कोई भी ऐसा जो ये खुद नैनों से नापें,
मिलेगी मंजिल कहीं पे कोई, हर मंजिल पर नजर टिकी हैं
बस हो एक इशारा उसका , नजर वहाँ पहले पहुँची है
नहीं अन्धेरा माने रखता, खुद की रोशनी से ये जागे
सूरज तो अब आता होगा, पहले नीद आँखों से भागे
उसके ही तह तम के कितने ,देखेंगे कितनी परतें हैं
बस आँखों की चमक में देखो पूरब से पश्चिम जितनी है
मिलन भाव में नीची नजरें , वो है सामने नजरें नीची
कैसे ऊपर उठेंगी बोलो, वो जो वहीं है मन की पहेली
स्वप्न और मन तक तो ठीक था ये तो सामने की अठखेली
झुक जाती है उसे देखकर , प्रेम राग आँखों की बोली
आतुरता थी मिलन की कब से कितनी राते जाग चुकी है
आँख खुली पलकों से अपने प्रियतम के पग नाप चुकी है
थकी नहीं वो रही अनवरत नैन खुले थे जाने कबसे
इन्तजार में अब प्रियतम जब खडा सामने झुके शर्म से
एक अलग मुस्कान छिपी है आँखों की परतों में कबसे
है ये मृदुल सी ,कुछ कोमल सी , हंस दे जब आखों से छलके
नहीं है वजनी नैन हँसे जब मन में फूल खिलते हों जैसे
हल्की से मुस्कान खिली अधरों पर आयी आँख से चलके
कोई बात नहीं गर हम जो शब्द नहीं कुछ कह सकते हैं
आँखों से हर मर्म समझ कर एक कहानी लिख सकते हैं
बस दो प्यादे रख दो सामने फिर देखो क्या बात है होती
ऊपर वाला भी सोचेगा, नैनो से फ़रियाद के मोती,,,
"बस दो प्यादे रख दो सामने फिर देखो क्या बात है होती
ReplyDeleteऊपर वाला भी सोचेगा, नैनो से फ़रियाद के मोती,,,"
लाजवाब पंक्तियाँ।
सादर