Tuesday, 22 May 2012

सुबह और शाम , मैं और वो....


सुबह और शाम , मैं और वो....

by Suman Mishra on Thursday, 26 April 2012 at 00:42 ·


बदगुमा सी याद दिल में, रात जगने की खुमारी
बस येही तकलीफ सी है, ना हे मेरी ना तुम्हारी
प्यार में ढलता हुआ दिन , सोच कर उगता ये सूरज
चांदनी की चादरों में लिपटी  हैं सब बेकरारी

क्यों ये कल हो , आज मिलना ना !नहीं मत मना करना
ये नहीं शाश्वत रहेगा, एक पल बस नागवारी
और भी पल जिन्दगी के , और भी कुछ काम बाकी
बस मिलेंगे शाम सुबहो, कुछ नहीं बस अपनी यारी



जाने कितनी शामे खाली ,जाने कितनी बातें बाकी
दिन कहाँ पर ढल गया था , याद के संग स्वप्नों की बारी
आके मुझको खुद जगाना, नीला अम्बर पास लाना
अब नहीं अम्बार यादें , धुल गयी सब शब् में सारी


कहकहों में खुश हुए थे, सब ही सब पर खुद हँसे थे
एक पल वो लहर आयी, दिल दुखा फिर से उदासी
एक दामन छूटता है, दूसरे ने धरी बाहें
गम को कितना भी भगाएं , चला आया फिर से यारी



सुर में वो और तान में वो , राग में लय में भी है वो
साज की थिरकन से पायल  की छनक झंकार में वो 
है शुरू अवरोह से वो, फिर मिला आरोह में वो
दीपकों की शिखा मध्यम  ,धुवें की लकीर सा वो

कब कहाँ हमसे अलग था , मेरा मन ही कुछ अजब था
जान ना पहचान उससे , फिर भी कहता जान मुझसे
क्या जुड़ा और क्या पृथक है , छितिज़ में बस वो फलक है
लालिमा के रंग सा वो , मैं नहीं बस मैं ही हूँ वो,,,,,,

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