Tuesday, 22 May 2012

बौराया मन "पगली" सुनकर ...क्या जाने अतीत में क्या है


बौराया मन "पगली" सुनकर ...क्या जाने अतीत में क्या है

by Suman Mishra on Saturday, 31 March 2012 at 00:48 ·


जिस्म नहीं है वश में पर एक कहानी बन सकती है
क्या क्या घटा है वहशी मन से ह्रदय विदारक बन सकती है
येही देखकर सोचा था उस काया को निः शब्द खड़ी थी
किसने उसको बोला पगली , वो सैनिक बन तत्पर सी थी

लहराते आँचल के कोने फटे हुए थे जाने कबसे,
ये तो धागों की रेखाएं, इस शरीर के तार बचे हैं,
क्या सर्वस्व बचा है इसका या आधार मिलेगा इसको,
इसके जीवन की संतति का क्या उपकार मिलेगा इसको ?



हर जीवन की एक कहानी ,कारण छुप जाता है सबसे

बस मन ही मन एक दुहाई पागल पन पर हंसता खुद से

प्यार किसी का नहीं मिला तो समय की हद में ही पागलपन
या ना मिलना जिसकी चाह हो, परे समय के आशान्वित मन

एक दायरा हद के बाहर जो हम खुद हैं नहीं लांघते
येही तो परिपाटी जीवन की इस समाज के सभी परिंदे,
"मगर उसे जो देखा मैंने क्या हद और दायरा क्या है "
वो भीरू है लडती जाती हर पल जीवन एक सजा है . 
  

वैसे भी  नारी का जीवन कितना भी हो पर है नारी

 सारे रिश्तों की छाया पर चलती जाती खुद को सँवारे

ज़रा पृथक हो ये छाया से ये समाज उठ कर ललकारे
आज वही ले खड़ी है पत्थर खुद में सिमटी,खुद के सहारे


क्या कर सकती है इश्वर ने इस पर कितने नियम बनाए
ये कृशकाय और वो संबल , ओ !पगली ये नाम मिला है
कुछ अंतिम साँसों का जीवन वो कैसे मर मर के  बिताए
क्यों कहता है उसको पगली, नाम तो कोई उसका बताये ?

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