आसान जिंदगी किस्तों में बंट गयी , कुछ सांस बची है आँखों के आसरे
by Suman Mishra on Saturday, 19 May 2012 at 15:26 ·
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आसान जिन्दगी किस्तों में बंट गयी ,
जो कठिन थी वो खुद की खुद में ही रह गयी
अब साँसों की जागीर में रहते हैं सिमटकर
वो जिन्दगी थी किसीकी ये जिदगी है और
आसान थी राहें आसान था जीना
मंजिल के पास आ उम्र ही निकल गयी
अब लोग पूछते है कहो तुम यहाँ कैसे
हमने भी कह दिया हम खोज में निकले
एक मोड़ है आगे मुड़ जाना है हमको ,
था काफिला वहाँ अब सफर तनहा है
मालूम है सबको कल तलक भीड़ थी
चलते बने हैं सब अब साथ छोड़ कर
कितने बही खाते सब मेरी विरासत ,
पन्नो के पुलिंदे उड़ते हैं हवा में
ये दौर नया है, पर दर्द पुराना
रिसते हैं मेरे जख्म पर दीखते नहीं
अब ये जहां महफूज या वो जहां माकूल
कल तक जो साथ थे ,अब तनहा है दस्तूर
इस जहां से उस जहां - रत्ती सा फासला
रह जाएगा बस ठहर थोड़ी उम्र बितानी है
दौड़े थे साहिल पे कभी ना मापयंत्र था
धरती पे पैर थे मेरे पंखों का बाना था
उसने यहाँ भेजा था हमें जी लूं जिन्दगी
अब चंद साँसे है मेरी उस पार जाना है
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आसान जिन्दगी किस्तों में बंट गयी ,
जो कठिन थी वो खुद की खुद में ही रह गयी
अब साँसों की जागीर में रहते हैं सिमटकर
वो जिन्दगी थी किसीकी ये जिदगी है और
आसान थी राहें आसान था जीना
मंजिल के पास आ उम्र ही निकल गयी
अब लोग पूछते है कहो तुम यहाँ कैसे
हमने भी कह दिया हम खोज में निकले
एक मोड़ है आगे मुड़ जाना है हमको ,
था काफिला वहाँ अब सफर तनहा है
मालूम है सबको कल तलक भीड़ थी
चलते बने हैं सब अब साथ छोड़ कर
कितने बही खाते सब मेरी विरासत ,
पन्नो के पुलिंदे उड़ते हैं हवा में
ये दौर नया है, पर दर्द पुराना
रिसते हैं मेरे जख्म पर दीखते नहीं
अब ये जहां महफूज या वो जहां माकूल
कल तक जो साथ थे ,अब तनहा है दस्तूर
इस जहां से उस जहां - रत्ती सा फासला
रह जाएगा बस ठहर थोड़ी उम्र बितानी है
दौड़े थे साहिल पे कभी ना मापयंत्र था
धरती पे पैर थे मेरे पंखों का बाना था
उसने यहाँ भेजा था हमें जी लूं जिन्दगी
अब चंद साँसे है मेरी उस पार जाना है
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